हर दिन एक चुनौती होती है की बच्चों को योजनानुसार पढ़ाये और बच्चों को भी पसंद आए । बच्चे मज़े करे, बोगस महसूस न करे या मजबूरी में ना करें। हाँ ये कहना बहुत मुश्किल है कि बच्चे अपने इकषा से स्कूल आते होंगे। बहुत से बच्चों को पढ़ना अच्छा लगता है ये मैं सुनता रहता हूँ। पर एक दिन मुझे लगा कि कुछ अलग तरीके से ये सवाल पुछते है । घर जाने के बाद, सभी बच्चे एक दुसरे से पूछेंगे की उनको क्या पसंद है स्कूल के बारे में , क्या उन्हें पड़ना अच्छा लगता है और क्यों? अनुभव बहुत ही मज़ेदार था एक ही बच्चे ने पढ़ाई को उसकी पहली पसंद बताया है। बच्चों कों पढ़ाई पसंद नहीं है फिर बहुत चुनौतीपूर्ण हो जाता है कि कैसे पढ़ने में मजेदारी लाया जाए। मजेदारी तो हो ही, साथ ही पढ़ाई बच्चों के दैनिक दिनचर्या को विचार में लेते हुए उपयुक्त हो I

यहाँ (सुकमा ) पर ज्यादातर बच्चे घर के काम में सहायता करते हैं जैसे – धान कि खेती में मद्द करते हैं, जंगल से लकड़ी लाना, तेंदू पत्ते में मद्द करना, घर के कामों में सहायता करना आदि । बच्चे अपने घर के काम में उतना ही सह्यता करते हैं जितना उनके घर के बड़े लोग। कुछ काम तो जिसे बच्चों ने अपने घर के लोगों से सीख ली है और खुद से कर लेते हैं बिना घर वालों के मद्द के जैसे- चापड़ा ( लाल चींटी की चटनी ) चटनी बनाना खुद से जंगल जाकर चापड़ा तोड़कर लाना और चटनी बनाना , जंगल से लकड़ी लाना, गाय-बकरी चारना आदि । बच्चों को आसानी होती है अपने घर के काम करने में क्यूंकी वे रोज शामिल या या अपने घर के लोगो को अवलोकन करते रहते हैं। जिन कामों में बच्चे शामिल नहीं होते हैं परंतु उन कामों को ध्यान पूर्वक देखते रहते हैं और धीरे-धीरे सीख रहे होते हैं । जैसे – जंगल से बासता काट कर लाना और उसे बाज़ार में बेचने जाना, चापड़ा चटनी बनाकर दोने में बेचना आदि। इन सभी कामों में बच्चे कौशल खुद से सीख रहे होते हैं और फिर खुद से भी कर पाते हैं । बहुत से बच्चे सड़क के किनारे चापड़ा चटनी, लाल भाजी, सुखसी ( सूखी मछली), बासता ( बाँस),पुट्टू ( मशरूम ) आदि बच्चे भी खुद से बेच रहे होते है।
प्रक्रिया
बच्चे इन सभी काम को कैसे करना है किस तरह से करना है सीख रहे होते हैं। गणित की अच्छी अभ्यस हो रही होती है जैसे हिसाब करना जोड़ – घटाव खुद से सीख रहे होते हैं चूंकि उन्हे ग्राहक से लेन देन में हिसाब कर रहे होते हैं। जब बच्चे दोने में मछली, बासता, पुट्टू आदि भरते है तो वे यह देखते हैं कि दोना जितना बड़ा है उसके अनुसार कीमत तय होता है । बच्चों को ऐसे पत्ते चुनने होते हैं जो एक नाप के हों ताकि एक नाप के दोने बन पाए । सुजाता ( पाकेला) कि बच्ची बताती है कि यदि दोना बड़ा होगा तो उन्हे कीमत बढ़ाना पड़ता है लेकिन सब जगह दस रुपये में बिकता है तो मेरे पास कोई नहीं आएगा इसलिए एक नाप का दोना बनाना पड़ता है।

बच्चों कि ज़िंदगी में कक्षा के अंदर प्रवेश करने से पूर्व बहुत सारे गणित के अनुभव होते हैं। उस अनुभव को कैसे इस्तेमाल करे की बच्चे पाठचर्या से आसानी से जोड़ पाए।बच्चे घर के जी गतिविधि में भाग लेते हैं उसमें वे अनुमान लगाना, पैटर्न, गिनना, जोड़-घटाना, गुणा- भाग, विभिन्न आकृतियाँ आदि सीख रहे होते हैं। जब बच्चे पुट्टू जंगल में लेने जाते हैं तब वे जानते हैं की कौन-सा पुट्टू स्वादिष्ट होता है और कौनसा जहरीला या खाने के लिए नहीं है बेहतर पहचान होती है। पुट्टू की क्या कीमत होगी उनके अपने अमानक इकाई (दोना ) के अनुसार कीमत तय करते हैं । बच्चों के रोजाना ज़िंदगी अमानक इकाइयों का इस्तेमाल मापन ( लंबाई, भार और धारिता) में करते है या अपने घर के लोगों को अपने आसपास में अमानक के विभिन्न उदाहरण को अवलोकन करते हैं। बच्चे मापन से जुड़े अनुभव को अपने खेल में भी घर दुकान-दुकान खेलते हैं जिसमें वे अपना खुद का पत्ते/ कागज से नोट बनाकर लेन-देन करते हैं।
बच्चों को समझने वाले वास्तविक उदाहरणों को शामिल करना निश्चित रूप से चुनौतीपूर्ण है, लेकिन यह जानना बहुत अधिक फायदेमंद है कि वे सीखना पसंद करते हैं। जब वे संदर्भ के माध्यम से सीखते हैं, तो हम उनके बारे में और अधिक सीखते हैं।