1. अगर आप किसी बात को लेकर बहुत चिंतित हैं और आपको किसी काम को ठीक से करने को कहा जाए  तो क्या होता है ? 
  2. कैसा लगता है अगर आप को किसी काम को एक निश्चित समय पर खत्म करना हो और आपके दोस्त व सहयोगी या परिवार के लोग आपकी किसी बात को ध्यान से नहीं सुनते हैं ?
  3. कैसा लगता है जब आपका अपनी भावनाओं पर नियंत्रण न हो और आप ये भी नहीं जानते कि इसे कैसे व्यक्त करना है ?

    ऐसी परिस्थिति में किसी काम को बेहतर ढंग से और नियत समय में पूरा करना बहुत मुश्किल होता है |

ऐसी परिस्थितियाँ आपकी जिंदगी में कई बार आई होंगी जब आपको लगा होगा कि आप भावनात्मक और सामाजिक रूप से उतने मजबूत नहीं हैं जितना आपको होना चाहिए था | अब जरा सोचिए कि ऐसी ही या इससे मिलती-जुलती परिस्थितियां जब छोटे बच्चों (कक्षा 3 या 4 में पढ़ने वाले ) के सामने आती होंगी तो उन्हें कैसा महसूस होता होगा |  

मैं इसकी विकरालता को समझने के लिए आपको एक परिदृश्य दिखाता हूँ – 

“ एक आदिवासी बच्चे को शिक्षक जंगल से बाहर स्कूल ले आता है एक ऐसी जगह पर जिसके बारे में बच्चा कुछ भी नहीं जानता बच्चा न ही शिक्षकों की भाषा समझता है और न ही अपने साथियों की और न ही उसे पढ़ने लिखने से कोई लगाव है क्यों उसने लोगों को पढ़ते लिखते कम ही देखा है और न ही उसे ठीक से खाना-पीना मिलता है फिर उसे स्कूल में 5 घंटे बिठाकर उस भाषा में उसे पढ़ाया जाता है जिसका उसनें नाम तक नहीं सुना है साथ ही यह भी उम्मीद की जाती है कि बच्चा पढ़ाई गई चीजों को ऐसे सीख जाए जैसे किसी शहर का बच्चा का सामान्य रूप से अपने समाज में सीखता है जहां सारी परिस्थितियाँ उसके अनुकूल होती हैं “ 

साथ ही कोविड 19 ने पिछले दो वर्षों में जो परिस्थिति बनाई है उसका सबसे प्रतिकूल प्रभाव बच्चों पर ही पड़ा है ऐसी परिस्थिति में बिना देर किये हमें सामाजिक और भावनात्मक ताने-बाने को समझने में बच्चों की मदद करनी चाहिए | ताकि बच्चे अपना जीवन बच्चा बनकर जी सकें और साथ ही उनका सर्वांगीण विकास भी होता रहे | 

इसके लिए जरूरी है कि हम बच्चों को अभिव्यक्ति के अवसर दें इंसानी भावनाओं को समझने का अवसर उपलब्ध कराएं ताकि वो अपनी भावनाओं को समझ सकें | बच्चों को ऐसी गतिविधियों में शामिल करें जिसमें बच्चे अपनी भावनाओं को व्यक्त कर सकें बच्चों के साथ सहयोग करें और उन पर भरोसा दिखाएँ |