सुकमा बस्तर संभाग का एक आदिवासी बाहुल्य इलाका है जहां मुख्यतः गोंड, हलबी, धुरवा और दोरला जनजाति रहती हैं | दशकों से सक्रिय नक्सलिस्म के कारण जनजीवन की कई ऐसी स्थितियां ऐसी हैं जिन्हें संतोषजनक तो बिल्कुल नहीं कहा जा सकता चाहे वह राजनीतिक हो, आर्थिक हो, शैक्षिक हो या फिर वैचारिक | सिर्फ शैक्षिक रूप से ही देखा जाए तो देश का सबसे पिछड़ा जिला है | मैं इसी जिले के छिंदगढ़ ब्लॉक के लस्केपारा गाँव में एक शिक्षक के रूप में काम करता हूँ |

कक्षा में छात्र
मैं जिस स्कूल में शिक्षण करता हूँ वहाँ मैं सामान्यतः एक-एक घंटे की तीन कक्षाएं आयोजित करता हूँ दो कक्षाएं लंच से पहले और एक कक्षा लंच के बाद | बाकी बचे वक़्त में अन्य शिक्षकों की कक्षाएं होती हैं | मैं जिस कक्षा से आपको रूबरू कराने वाला हूँ वो लंच के बाद होने वाली तीसरे घंटे की कक्षा है जो 2;00 से 3;00 बजे के बीच होती है आमतौर से मेरी कक्षा में तीसरी और चौथी के बच्चे एक साथ बैठते हैं | उस दिन मेरी तबीयत थोड़ी नासाज थी इसलिए मैंने अपनी तीसरी कक्षा का आयोजन न करने का निर्णय लिया, लेकिन बच्चे तो कक्षा में मौजूद थे इसलिए मैंने एक कुर्सी ली और कक्षा के दरवाजे के सामने बैठ गया और बच्चों को मैंने बाहर निकलकर खेलने को कह दिया | कुछ बच्चे बाहर निकलकर गए कुछ कक्षा में ही बैठे रहे | कक्षा में उपस्थित कुछ बच्चों ने कहा कि सर जी हम लोग पढ़ेंगे लेकिन मैं उन्हें टालना चाहता था ताकि बच्चे बाहर जाकर खेलने लगें लेकिन कुछ ही देर में बाहर खेल रहे बच्चे भी वापस आ गए उन्होंने भी वही बात कही पर मैंने कोई जवाब नहीं दिया | फिर एक साथ 6-7 बच्चे इकट्ठे हो गए इसलिए मैंने उनको कहा कि कल पढ़ेंगे जाओ बाहर खेलो तो चौथी कक्षा की एक बच्ची जिसका नाम गौरी है वो कक्षा की सबसे होनहार बच्ची है परंतु थोड़ी नकचढ़ी और गुस्सैल भी है उसने चिढ़कर कहा नहीं पढ़ाओगे तो हम खुद पढ़ लेंगे | मुझे मौका मिल गया सो मैंने उनसे बोल दिया तो जाओ खुद से पढ़ो मैं तो रोज पढ़ाता ही हूँ | कुछ ही देर में चौथी के बच्चों ने मिलकर तीसरी और चौथी दोनों बच्चों को इकट्ठा कर किया दोनों कक्षा की संख्या शायद उस दिन 17 या 18 रही होगी | उन्होंने प्लान बनाना शुरू किया किया कि कौन क्या करेगा |

उन्होंने अपनी मर्जी से 3-4 बच्चों के कई ग्रुप बनाए, हर एक ग्रुप की खास बात यह थी कि बनाया गया ग्रुप heterogenous था यानि हर एक ग्रुप में कम और ज्यादा जानने वाले, छोटे-बड़े और तीसरी और चौथी के बच्चों का शानदार मिश्रण था (शायद उन्होंने पिछली कक्षाओं के दौरान किये जाने वाले सामूहिक कार्यों से सीख लिया था ) अब बारी थी हर एक ग्रुप के अपने पसंद के अनुसार उपयुक्त काम चुनने की | मैं वहीं बैठा देख रहा था मुझे लगा शायद अब गाड़ी अटकने वाली है लेकिन तभी अचानक कक्षा 4 के 2 बच्चों संदीप और जोगेन्द्र ने आज ही आँगनवाड़ी से स्कूल में आए पांचों बच्चों को structure बनाने का काम दे दिया | उन्होंने उनसे क्या कहा मैं नहीं जानता क्यों मैं उनकी भाषा (हलबी,दोरली ) नहीं जानता लेकिन वो वहीं जमीन पर बैठकर खेलने लगे | फिर उन्होंने तय किया कि सभी मिलकर अपने ग्रुप के साथ ब्लैक्बोर्ड के पास बैठेंगे और उसके किनारे-किनारे वर्णमाला को लगाएंगे तीसरी के बच्चे वर्णमाला अपनी कॉपी में लिखेंगे और चौथी के बच्चे जो जिस ग्रुप में हैं उनकी मदद करेंगे (बच्चों द्वारा निर्धारित सारे कार्य पिछली कई कक्षाओं में किये जा चुके थे परंतु इस बार बच्चों ने अपनी मर्जी से अपने तरीके से बिना किसी निर्देशन के कर रहे थे ) अब सवाल यह था कि चौथी के बच्चे क्या करेंगे वो आपस में बात ही कर रहे थे कि मैंने कहा कि बताओ तुम लोग क्या करोगे जोगेन्द्र ने कहा कि मैं अली की कहानी लिखूँगा सो मैंने उसे लिखने को कह दिया विजय जो मेरी कक्षा का उम्र में सबसे बड़ा लड़का है उसने कहा कि मैं चित्र बनूँगा उसकी बात मानते हुए मैंने उसे एक पेज दे दिया|

दो-तीन बच्चों ने एक कहानी की पुस्तक ‘ खीर ‘ निकाली और पढ़ने लगे | इस तरह सभी बच्चे अपने-अपने निर्धारित काम में लग गए | अगले 30-35 मिनट तक घोर सन्नाटा था शायद आज तक की कक्षा में बच्चों ने आज सबसे काम बात की होगी | सभी बच्चों ने सिर्फ अपना काम किया बेगैर किसी तनाव के एक दूसरे से बात किये बिना कक्षा का आज पहला दिन था जब सभी बच्चों ने अपना निर्धारित काम पूरा किया | ये सब देखना मेरे लिए लिए एक सुखद अनुभव था इसलिए आज मैंने बच्चों की कई तस्वीरें लीं |