
भारत में जब भी चुनाव लड़े जाते है, तो उनका मुद्दा केवल एक ही होता है – “विकास”
बातें तो सभी करते है विकास के बारे में, चाहे वह इस देश का आम नागरिक हो या फिर कोई नेता| परन्तु जानते बहुत कम लोग है की विकास आखिर है क्या? क्या केवल अच्छी सड़के, पानी, बिजली, स्वास्थ्य ही विकास की पहचान है? यदि इसे विकास का नाम देकर कोई भी नेता नेता वोट ले रहा है, तो यह देश की जनता के साथ धोखा है| यदि किसी क्षेत्र में यह सभी सेवाएं एक अच्छे रूप में मौजूद नही है – तो यह हमारी सरकार की नाकामी का परिणाम है| अगर यह सेवाएं मौजूद है, तो इसका मतलब यह नही है की आप विकसित है; आपका क्षेत्र और देश विकसित है| यदि हम किसी देश के विकसित होने की बात करते है, तो उसमें सर्वप्रथम बात आती है आर्थिक प्रगति कि ‘क्या आपके यहाँ प्रति व्यक्ति की आय में लम्बे समय तक वृद्धि हो रही है और गरीबी में लगातार गिरावट आ रही है?’
ऐसा तब होगा जब निजी क्षेत्र, उद्द्योग युवाओ के लिए रोज़गार के अवसर पैदा करें| स्वास्थ्य, शिक्षा, बिजली जैसी आधारभूत सुविधाएं सभी नागरिकों को उपलब्ध होनी चाहिए| जब तक स्वास्थ्य और शिक्षा व्यक्ति के धन निवेश करने की क्षमता के अंतर्गत नही आती है, तब तक हम कैसे अपने आपको विकासशील देश कहने के भी योग्य हो सकते है, विकसित कहना तो दूर की बात है| भारत जैसे बड़ी जनसंख्या वाले देश में नागरिको को ठीक तरह से मालूम ही नही है कि विकास किसे कहाँ जाता है| केवल 5 साल में कुछ सड़कों के निर्माण को विकास की पद्धति में नही रखा जाता है| यदि हम यहाँ की शिक्षा पर बात करते है, तो यह पाते है की अभी भी कई क्षेत्रो में ऐसे विद्यालय है जहाँ बिजली होना तो दूर की बात ठीक तरह से उस पर छत भी नही है| स्वास्थ्य की ओर देखते है तो पाते है की अस्पतालों की हालत इतनी ख़राब है कि वहां रहने वाले मरीज़ जमीन पर लेटे हुए है या फिर अगर गलती से उन्हें बेड मिल भी गया है| तो उनके बेड पर दो मरीज़ पहले से मौजूद है| या फिर ऐसा नही है तो मरीज़ के साथ रुकने वाला आगंतुक व्यक्ति उस बेड पर मरीज़ के साथ ही सोया हुआ है|
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चुनावों में नेताओ द्वारा इन जरूरतों को पूरा करने का आश्वासन देना भी अपनी नाकामियों का बेशर्मी से सरे आम ढोल पीटना है| ये विकास के वायदे नही अपितु पिछड़ेपन को हटाने के सपने है| पिछड़ापन दूर होगा तभी तो विकास की बुनियाद राखी जाएगी| जातिवाद और संप्रदायवाद के आधार पर अपनी सरकार बनाना बिलकुल वैसा ही है जैसा अपने घर में स्वयं आग लगाकर उसका आनंद लेना| वोटों की राजनीति में देश के संसाधनों को मुफ्त में बांटने का अर्थ है आने वाली पीढ़ियों का भी फल खुद ही खा लेना| भारत देश पिछड़ा होकर भी विकास की बात करता है, यह बिलकुल वैसा ही लगता है जैसे रेगिस्तान में कोई बरसात की बात कर रहा हो|
विकास की बातें तभी अच्छी लगती है जब आप भ्रष्टाचार, जातिवाद, अशिक्षा, संप्रदायवाद जैसे समाज का विनाश कर रही बातों का कलंक मिटा पाये|
परन्तु इस देश की सालो पुरानी राजनीति की यह प्रथा है कि यदि वोट मांगें जायेंगे तो इन्ही आधारों पर क्योकि इस देश के राजनेताओं का यह मानना है कि यदि देश के नागरिकों की इन समस्याओ को दूर कर देंगे| तो अगले पाँच साल बाद हम किस आधार पर वोट मांगेंगे| पाँच साल में केवल एक सड़क बनाकर देश के नागरिकों से वोट मांगने की यह राजनीति बहुत पुरानी है और आने वाले समय में तब तक यही राजनीती रहेगी जब तक की इस देश के नागरिक सही मायने में विकास की परिभाषा ना समझ लें की आखिर इनका विकास किस आधार पर होगा| यूरोपीय देशो की बात करें तो वहाँ के नागरिक 40% कर सरकार को देते है बदले में सरकार उन्हें अच्छा स्वास्थ्य, शिक्षा आदि आधारभूत सेवाएं ना के बराबर शुल्क पर प्रदान करती है| लेकिन भारत का दुर्भाग्य यह है की वह आज़ादी के समय से लेकर अभी तक अपने पिछड़ेपन से ही जूझ रहा है और पता नही आने वाले कितने दशकों तक यह इस तरह ही जूझता रहेगा? शायद यह तब तक जूझता रहेगा जब तक यहाँ के सभी नागरिकों को यह समझ ना जाए कि पाँच साल में आपके घर के आगे की केवल सड़क बना देने से विकास नही होता है|
भारत देश का एक दुर्भाग्य और यह है, यहाँ के युवाओं में डर जो युवा अपने देश के विकास की परिभाषा समझता है, लेकिन वह चुप रहता है क्योकि उसे एक नौकरी मिली हुई है|
जिससे उसे दो वक़्त का खाना समय पर मिल जाता है| कोई भी अपने आराम को तब तक नही छोड़ता जब तक के ओके आराम में आप दखल न दो ऐसे बहुत से उदाहरण आप अपने रोज़ के जीवन में देखते है| आप खुद भी बहुत कुछ समझते है लेकिन आप भी बहार निकल कर इसके खिलाफ आवाज़ नही उठा सकते है क्योकि यह भारत देश वह भारत देश है जिसमें आवाज़ उठाने वाले की आवाज़ किसी भी क्षण दबा दी जाति है| आखिर यहाँ के आम नागरिकों तक विकास की सही परिभाषा पहुंचाएगा कौन? इसके साथ यह बहुत आवश्यक है कि आप और हम जैसे चिंतनशील और जागरूक लोग ज्यादा से ज्यादा साहस बटोरने का और नागरिकों को सही प्रकाश दिखने का प्रयत्न नही करेंगे| तब हम इस ही प्रकार इस घने अन्धकार में घीरे रहेंगे और हर पाँच वर्ष में इस उम्मीद में ही सरकार बनायेंगे की शायद इस बार इसका ईमान जागे और यह हमें इस घने अंधकार में छोई सी ज्योति जलाकर पथ प्रदर्शित करें| यदि हम इतिहास की माने तो संसार के जितने भी देशों ने विकसित होने का प्रयास किया है, उसे इस मार्ग से अवश्य ही गुजरना पड़ा है|
Read a report on India’s percieved corruption ranking here
मैं पिछले ११ महीनो से छत्तीसगढ़ के सुखमा जिले में अपनी फ़ेलोशिप के अंतर्गत शिक्षार्थ संस्था के साथ शिक्षा के विषय पर काम करता हूँ। इसमें कोई दो राय नहीं है की हमारी स्थिति गंभीर है। इतनी आबादी वाले देश में विकास के बारे में लिखना और उसपर काम करने में बहुत फर्क है। मेरा मानना है की जनता, ख़ास रूप से युवा इस बात को समझते है। उनकी अपेक्षा ये नहीं है की रातोरात हम चीन या अमेरिका बन जाए। बस ये की एक सच्ची कोशिश तो दिखे – नाकि हमे मुर्ख समझकर गुमराह किया जाए। हाल के प्रदर्शन जो देश भर में हो रहे है, वो क्या इस बात को नहीं दर्शाते की पानी शायद अब हमारे सब्र के बाँध को तोड़ने के कगार पर है? और सिर्फ भड़काऊ बातों से कोई हमे समेट नहीं पायेगा…
The blog was originally published in India fellow blog. The blog is written by Md. Azhruddin who was a former India fellow working in Shiksharth Sukma.