छत्तीसगढ़ के एक छोटे से गाँव का नाम जब मैंने एक सूचना बोर्ड पर पढ़ा तो बहुत हैरानी हुई, यह नाम पढ़ कर “किसका पारा” मतलब किसका गाँव? यह सिर्फ एक नाम नही है नाम में छिपा एक सवाल है| जो ना केवल छत्तीसगढ़ को बल्कि पुरे भारत देश को झिंझोड़ रहा है| यह गाँव किसके है? यह शहर किसके है? यह सरकार किसकी है और यह नदी, नाले, तालाब, गलियां इत्यादि सब किसके है? आखिर यह देश किसका है?

हम यह कह सकते है कि यह सभी चीज़े उन चंद मुट्ठीभर पूंजीपतियों की है| जो पूरी दुनिया का भविष्य निर्धारित करते है| विकास कैसे होना है? कब होना है? यह सब उनके बड़े-बड़े परियोजनाओं के कार्यो पर आधारित होते है| जिसमें सरकार की भूमिका केवल इतनी होती है कि वह उनका इशारा पाते ही भूखे भेड़ियों की तरह अपने ही देश की मासूम जनता को नोचने चल देती है| आज परिस्थिति यह है कि लोगो को उनके ही घरो से बेदखल किया जा रहा है| केवल प्राक्रतिक संसाधनों से भरी भूमि को अपने वश में करने के लिए उनकी हत्या की जा रही है और महिलओं के साथ बलात्कार किया जा रहा है| लेकिन भारत सरकार पूंजीपतियों द्वारा मुहैया करायी जा रही विलास्नाओ में लिप्त है| क्या इस देश की सरकार को कभी अपने देश के नागरिको की फ़िक्र होती है?

आज आदिवासी क्षेत्रों की परिस्थिति पर नज़र डालते है, तो पाते है कि गांवों में लोगो से ज्यादा तो भारतीय सैनिक है| क्या कर रही है हमारी सेना इन क्षेत्रों में? क्या इन्हें इन गाँव वालो की सुरक्षा की जिम्मेदारी दे कर बैठाया गया है? नहीं इन्हें बैठाया गया उनकी हत्या करने उनको घसीट कर उनकी जमीनों से बेदखल करने के लिए और उनके साथ जितना बुरा व्यवहार कर सकते है उतना बुरा व्यवहार करने के लिए, भारतीय सेना सीमा की सुरक्षा को छोड़ कर अगर देश के अंदर के झगड़ें को  सुलझाने आ रही है| तो क्या इस देश की शासन व्यवस्था में जो पुलिस नामक दल है, वह क्या मर गयी है? इस देश को लोकतांत्रिक देश कहने में मुझे शर्म आती है क्योकि इस देश की सरकार सारी सत्ता तो सैन्य तानाशाहों के हाथ में कुछ मुट्ठीभर पूंजीपतियों के इशारों पर देती जा रही है| इस देश के एक हिस्से में सलवा जुडूम हो जाता है| जिसकी खबर किसी के पास नहीं पहुंचती यह खबर आपको केवल उन लोगो से पता चलती है| जो इस विषय पर पढ़ाई कर रहे है या फिर इस क्षेत्र के मूल निवासी है| क्या अब सरकार पुरे देश को दिल्ली जैसी हालत में लाकर जहाँ सांस लेना मुश्किल हो गया है फिर अपने देशवासियों को मंगल ग्रह पर लेकर जाएगी?

आज सभी नक्सलीयों को गलत कहते है| क्या अपनी रक्षा में हथियार उठाना गलत है? जो लोग इनके द्वारा उठायी गयी बंदूकों को गलत बताते है, मेरा एक सवाल है की अगर मैं आपको आपके घर से बाहर बिना वजह निकालने लगूँ तो क्या आप अपनी आत्मरक्षा में हथियार नहीं उठाएंगे जब आपको यह भी पता हो कि आपकी न्याय व्यवस्था भी मेरा साथ देगी!

हमारी खुद की कोई विचारधारा नहीं है| अगर हम कहते है कि हमें आजादी दिलाने वाला लाठी वाला था और बन्दूक वाला नहीं तो आज हमारे देशवासी कौनसी आजादी के लिए बंदूक उठाये बैठे है? चलो मान लेते है सरकार सही है और नक्सली गलत पर हम तो इन्तेकाम से इन्तेकाम ही पैदा कर रहें है| अगर उन्होंने बंदूके उठायी तो हमने कितनी बार उनसे बात करने का प्रयास किया और कितनी बार हमने उनसे बिना हथियार के बात की? बदले में हमने भी उनके खिलाफ सेना खड़ी कर दी उनसे दुगनी तादात में आज भी खड़ी करतें जा रहे है क्योकि हमें विश्वास है की हम उनसे ज्यादा ताकतवर है और उन्हें मिटाने में हम सफल ही होंगे| ऐसा कहा जाता है कि भारतीय सैन्य बल दुनिया का सबसे शांत और अनुशासन में रहने वाला बल है और हम इनके अधिकारियों को पूछताछ करने का प्रशिक्षण देते है ना की कष्ट पहुंचाने का … अगर आप इन आदिवासी या नक्सल प्रभावित क्षेत्रों का कभी दौरा करने निकलेंगे तब आपको इस बात का ज्ञान होगा की हमारे सैन्य बल किस प्रशिक्षण का इस्तेमाल करते है| मुझे तो इस बात का डर है की धीरे-धीरे इस देश में अराजकता ने अपने पैर पसारने शुरू कर दिए है| अगर ऐसे ही हालात रहे तो इस देश से लोकतंत्र का नामोनिशां मिट जाएगा और सैन्य तानाशाहों का ही बोल बाला होगा …

The blog was originally published in India fellow blog. The blog is written by Md. Azhruddin who was a former India fellow working in Shiksharth Sukma.